Friday, December 4, 2009

एक सफल यात्रा - 2

थोड़ी देर बाद दोबारा से फ़ोन बजा , काम के हालात कुछ सुधरे हुए लगे और मुझे अब थोड़ा सा ध्यान भी आया क़ि फ़ोन बज रहा है । पर अब भी मुझे नही लग रहा था कि मै जा पाउँगा । फ़ोन उठाया तो रतन जी ने दूसरी तरफ से कहा 'क्या लग रहा है ...चल पाओगे ' । उत्तर में मैंने कहा कि कोशिश तो पूरी कर रहा हूँ पर अभी तक फ़ाइनल नही बता सकता हूँ कि चल पाउँगा या नही । रतन जी ने पूछा 'आप एक बात बताइए, आप अगर जाना चाहते हैं तो हम रात भर आपका इंतजार कर सकते हैं , ये मैं पहले भी कह चुका हूँ, अगर आपका मन है और लगता है कि काम १२-१ बजे तक ख़तम हो जाएगा तो भी हम तैयार हैं ' । अब वो इतने प्यार से कह रहे थे कि मैं उन्हें मना नही कर पा रहा था और मैं जाना भी चाहता था ,यह भी सच है । अबकी बार विश्वास भरे शब्दों में उन्हें कहा कि बताता हूँ थोड़ी देर में , क्यूंकि मुझे लग रहा था कि मैं काम को ख़तम कर ही लूँगा १-२ घंटे में । कंप्यूटर के कोने में घड़ी में टाइम देखा तो 8.45 बज गए थे ।
मेरे साथ ही मेरा एक साथी भी था ..मेरे काम करने के बाद उसे देखना था कि काम सही हुआ है या नही । वो टेस्टिंग टीम में है और इंतजार में है कि कब उसकी बारी आए , बड़ी मुश्किल से उसे भी रोके रखा था मैंने ...आख़िरकार ३ दिन की मेहनत रंग लाइ और मेरे मुंह से अनायास ही निकला 'i have done it ..Amit...be ready for your part of work' .. मैं तो ऐसे बोला जैसे कि आइन्स्टीन ने 'यूरेका' शब्द बोला था :) । अब मेरे हिस्से का तो काम लगभग ख़त्म ही हो गया था पर अब देखना था कि अमित जी क्या करते हैं ...
मैंने रतन जी को फ़ोन करके संकेत दिया कि जाना फ़ाइनल हो सकता है , अभी आपको बताता हूँ थोड़ी देर में । वो भी काफ़ी खुश हुए और बोले कि इंतजार में हैं आपके फ़ोन के । अमित भी काम में लगा हुआ था और हम दोनों ने मिलकर लगभग ११ बजे सब कुछ समाप्त कर दिया । मैंने अमित को धन्यवाद बोला और साथ में ही रतन जी को कॉल करके ऑफिस आने के लिए बोल दिया । वहां से ऑफिस का रास्ता लगभग १-१.५ घंटे का था तो वो जल्दी ही घर से निकल लिए । अब मैं ऑफिस में उनके आने का इंतजार कर रहा था और उन्हें वहां तक पहुँचने का रास्ता भी बता रहा था फ़ोन पर ही ।
अभी तक मुझे ये नही पता था कि हम किधर जा रहे हैं ,फ़िर भी मन में एक उत्साह था और इंतजार था अगले ३ दिनों का । लगभग १२.३० पर वो लोग मेरे ऑफिस पहुंचे । मुझे अब तक नही पता था कि इस यात्रा में कौन कौन शामिल है । गाड़ी में बैठे तो रतन जी ने सबसे परिचय करवाया । प्रीती ,ज्योति,नीरू और सुजाता ..ये चारों रतन जी के विधार्थी हैं स्कूल में ...बड़े ही होनहार और छोटी ही उम्र में काव्य प्रतिभा के धनी हैं । उन सबको मेरे बारे में वो पहले ही बता चुके थे , उनके अलावा रतन जी ,ड्राईवर और मैं । काफ़ी हैरान हुआ मैं कि कैसी होने वाली है ये यात्रा ...इन बच्चों के साथ जिन्होंने अभी सिर्फ़ मेट्रिक के इम्तिहान ही दिए हैं ।
क्रमश :

3 comments:

  1. अब पता चलेगा कि सवारी किधर जा रही है..अगली कड़ी का इन्तजार.

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  2. बहुत प्र्वाहमय चल रही है आपकी यात्रा। सही मे ये बच्चे आपको बतायेंगे कि आज के बच्चे वो पिछले जमाने के बच्चे नहीं हैं मुझे तो यही लगता है बाकी अगली पोस्ट का इन्तज़ार करते हैं। शुभकामनायें

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