Monday, October 26, 2009

संवेदना -4

ऑफिस पहुँचने के बाद उसके मन में वही सब चल रहा, उसने उन बच्चों को स्कूल में दाखिला दिलाने का मन बनाया उसके दोस्त योगेश ने भांप लिया था कि उमंग के मन में कुछ दिन से उथल पुथल मची हुई है वह उसके पास पहुँचा और पूछा कि क्या बात है ? उमंग ने उसे सारी बात बताई और बताया कि उसने मन बना लिया है कि वो उन बच्चों में से जितने को हो सकता है स्कूल में दाखिल करवाएगा। 'वाह !!! यह तो बहुत ही उम्दा ख्याल है , मैं भी तुम्हारा इस काम में जरुर साथ दूंगा । ' योगेश ने कहा

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ऐसा करते हैं कि कल ऑफिस आते वक्त तुम गवर्नमेंट स्कूल में दाखिले के बारे में पूछताछ करके आना ,फ़िर हम रविवार को उन बच्चों के माता पिता से मिलेंगे और उन्हें शिक्षा के महत्त्व के बारे में बताएँगे ,देखते हैं कितने लोग तैयार होते हैं अपने बच्चों को स्कूल में दाखिला करवाने के लिए ??? क्या ख्याल है तेरा ' उमंग ने कहा

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हम्म ... काफ़ी अच्छा विचार है ,ठीक है, मैं कला पता करके आता हूँ ' योगेश बोला

शाम को उमंग फ़िर वहीँ से गुजर रहा था आज ऑफिस से जल्दी निकल आया था ,शाम का सूरज ढलने ही वाला था आज उसने उन बच्चों से बात करने का मन बनाया था उसने देखा कि बच्चे वहीँ खेल रहे हैं , उसने मोटरसाईकिल खड़ी रोकी और उन बच्चों की तरफ़ चल पड़ा जैसे ही वो उन बच्चो के पास पहुँचा ,सब ही बड़ी उत्सुकता भरी नजरों से उसकी तरफ़ देख रहे थे ... अनगिनत प्रशन थे उनकी छोटी छोटी आंखों में ...

उमंग ने एक बच्ची से पुछा ,' क्या नाम है तुम्हारा ?'
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खुशी ...'उसने धीरे से कहा
मन ही मन उसने सोचा कि नाम खुशी और इस माहौल में ....कैसी विडंबना है ,हमारे समाज की ....
तब तक उसे सब बच्चों ने घेर लिया था , चारों तरफ़ सब बच्चे खड़े हो गए थे ...
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स्कूल जाती हो क्या तुम ??' उमंग ने पुछा
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नही ,मैं स्कूल नही जाती । ' खुशी ने कहा
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स्कूल जाना है ??' उमंग बोला
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हाँ , मेरा मन तो बहुत करता है पर बापू स्कूल नही जाने देता ' खुशी ने नीचे सिर झुका कर बोला
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क्यों ??'
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कहता है कि क्या करेगी स्कूल जा के , मेरे पास पैसे भी नही हैं स्कूल की फीस के लिए ..'खुशी ने कहा
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मैं तुम्हे स्कूल में दाखिल करवाऊ तो जाओगी स्कूल में ??'उमंग ने कहा
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हाँ हाँ ,पर बापू.....??खुशी ने हिचकिचाते हुए कहा
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तुम्हारे बापू से मैं बात करता हूँ , कहाँ रहती हो तुम ....' उमंग ने पुछा

उसने सामने ही एक झुग्गी की तरफ़ इशारा किया उमंग ने उससे रविवार को मिलने को कहा , बोला कि रविवार को मैं तुम्हारे घर के तुम्हारे माँ बापू दोनों से बात करूँगा
उसने बाकि सब बच्चों से पुछा कि क्या उन्हें भी स्कूल जाना है ...तो सबने बड़े ही खुश हो कर हामी भर दी ...
उसके दिल को थोड़ा सा शकुन मिला ,उसके बाद खुशी और दूसरे बच्चों को बाय बाय कहके वो अपने घर की ओर चल दिया

अगले दिन ऑफिस पहुँचते ही योगेश उसके पास पहुँचा और स्कूल की सब औपचारिकताएं समझाई ,बहुत ही नाम मात्र फीस में सब बच्चों का दाखिला हो सकता था ,हमारे शिक्षा प्रणाली का यह तो फायदा है कि सरकारी स्कूल में आप नाम मात्र फीस में पढ़ सकते हो ...फ़िर यह सब आपके और आपके माहौल पे निर्भर करता है कि आप क्या बनते हो ...अब्दुल कलाम भी वहीँ से बनते हैं और एक साधारण आदमी ,जो जिंदगी भर दो वक्त की रोटी के जुगाड़ में ही गुजर देता है ,वो भी वहीँ से निकलता है दोनों ने ख़ुद से ही सारा खर्चा करने की ठानी , यह कुछ ज्यादा नही था अगर १५ बच्चे भी हों तो उनका खर्च मात्र १२००-१३०० रुपये होता ....उसने योगेश को कल शाम वाली बात भी बताई कि उसने बच्चों से बात की और रविवार के प्रोग्राम के बारे में भी बताया ....योगेश खुशी खुशी तैयार हो गया

दो दिन बाद ही रविवार का दिन गया , योगेश और उमंग दोनों ही उस झुग्गी झोपडी वाले इलाके में पहुंचे खुशी ने जैसे ही उमंग को देखा तो भाग के उनके पास आई और अपने दोनों छोटे छोटे हाथों को जोड़ के बोली ...'नमस्ते भइया ...' योगेश और उमंग दोनों ही बहुत खुशी हुए और मुस्कुराने से ख़ुद को रोक सके ...फ़िर खुशी के साथ साथ वो उनके घर की तरफ़ चल पड़े ...आगे आगे वो चल रहे थे और पीछे पीछे बच्चे ....
खुशी के पिता जी घर के बाहर ही खड़े थे ...इतने बच्चों को आते देख वो हैरान रह गए , वहां पहुँच कर उमंग ने अपने बारे में थोड़ा बताया और उसे पढ़ाई के महत्त्व के बारे में समझाया ,उमंग ने नोट किया कि वो काफ़ी धयान से बातें सुन रहा है , फ़िर पूछा कि खुशी को स्कूल क्यों नही भेजना चाहते हो ??
खुशी के पापा ने कहा कि मैं तो स्कूल भेजना ही चाहता हूँ पर मेरी आमदनी ही इतनी नही है कि मैं इसका खर्चा सहन कर सकूँ, मैं फेरी लगता हूँ और बड़ी मुश्किल से ही घर का खर्चा चला पाता हूँ ...खुशी के दो छोटे भाई बहन भी है ....
उमंग ने कहा कि अगर हम खुशी का दाखिला दिला दें तो क्या तुम उसे स्कूल जाने दोगे ...
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भाई साहब , अँधा क्या चाहते दो आँखें बस ....मैं तो खुशी खुशी इसको स्कूल जाने दूंगा ...'
तब तक वहां काफ़ी भीड़ लग चुकी थी, सब लोग उमंग और योगेश की बातें धयान से सुन रहे थे अपनी बात पूरी होने पर योगेश ने कहा की देखिये , यहाँ लगभग अभी १०-१२ बच्चे हैं ,अगर उनके माता पिता भी यहीं हैं और उनके बच्चों की पढ़ाई को लेकर को दिक्कत है तो वो हमसे इस बारे में बात कर सकता है खुशी के पिता तो तैयार हो ही गए थे , फ़िर लगभग उन्होंने ११ बच्चों के माता पिता से बात की जो अपने बच्चो को स्कूल तो भेजना चाहते हैं पर पैसे की तंगी का कारण नही भेज सकते ...कुछ लोग तो ऐसे भी थे जो बात ही नही करना चाहते थे ...
फ़िर भी कुल मिलकर उन्होंने ११ बच्चों को वहां से चुना और कल सुबह तैयार रहने को कहा ...अगली सुबह योगेश और उमंग दोनों ही सब बच्चों को लेकर स्कूल पहुंचे और मुखाध्यापक को सारी कहानी सुने उसने उन दोनों के कार्य की बड़ी प्रशंसा की और कहा कि इन बच्चों को वर्दी और किताबें स्कूल से ही दिलवा देंगे... योगेश और उमंग के लिए तो यह सोने पे सुहागा वाली बात थी...उन्होंने मुखयाधापक का बहुत धन्यवाद दिया और बच्चों को स्कूल छोड़ के अपने ऑफिस की राह पे चले ...


अगली सुबह जब उमंग दोबारा वहां से गुजरा तो उसे कोई बच्चा वहां से खेलता हुआ नही दिखा , थोडी दूर जा के देखा तो खुशी ,स्कूल का बैग लिए स्कूल जा रही थी , उमंग को देख के खुशी ने दूर से ही हाथ हिलाया ...जैसे ही मन ही मन वो छोटा सा बचपन उसे धन्यवाद दे रहा हो ...उसने भी हाथ हिलाया और मुस्कुरा दिया

आज उसे बहुत ही अच्छा लग रहा था और अपने मन के किसी कोने में असीम संतुष्टि और शान्ति को महसूस कर रहा था , मन झूम के गा उठा था ..'अपने लिए जिए तो क्या जिए तू जी दिल जमाने के लिए ...' :)

"किसी अंधेरे कोने को
रोशन करने की आरजू है ...
किसी रोते हुए बच्चे को
हंसाने की आरजू है ...
किसी प्यासे पथिक को
पानी पिलाने की आरजू है ....."

इन पंक्तियों के अर्थ को समझ कर एक पूर्णता के एहसास वो अच्छे से महसूस कर रहा था आज ....


'समाप्त '

5 comments:

  1. बहुत अच्छी प्रेरणा देती कहानी है। शिल्प शैली कथानक सभी का निर्वाह अच्छी तरह किया है बधाई और शुभकामनायें लिखते रहिये आशीर्वाद्

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  2. जिंदगी को बहुत करीब से दिखाती है ये कहानी। बधाई।
    -Zakir Ali ‘Rajnish’
    { Secretary-TSALIIM & SBAI }

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  3. पर आजकल तो सरकारी स्कूलों में नाम मात्र की फीस ली जाती है और इतने पैसे १०-२० रूपए तो कोईभी दे सकता है ....??

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  4. naam matra fees li jati hai ...par unke ghar waalon ko bhi to samjhane wala hona chahiye ki iska faayda uthhaya jaye :) ...somebody is required to make them understand the importance of educataion, Moreover a lot of people are there in our country living even below the poverty line ,so 10-20Rs. will absolutely have some value for them ...

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  5. जोगी जी,
    मैंने तो कहानी का अतिम भाग आज पढ़ा है...पूरी कहानी पढूंगी ज़रूर...
    यह बात बिलकुल सही है...कि कुछ ऐसे भी हैं जिनके लिए, १०-२० रुपय्ये की कीमत भी बहुत है...
    और यह भी बिकुल बिलकुल सही बात कही आपने....शिक्षा का महत्त्व भी तो समझाने वाला कोई चाहिए.....
    ख़ास करके लड़कियों को पढ़ाने के लिए....
    बहुत ही सार्थक कहानी ...
    पढ़ कर अच्छा लगा कि ....ऐसी सोच वाले भी मौजूद हैं, दुनिया में.....बहुत ही नेक ख्याल हैं आपके..
    बधाई....

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