Thursday, October 8, 2009

संवेदना--1

रोज की तरह उमंग अपनी मोटरसाईकिल से अपनी कंपनी की तरफ़ जा रहा था । सुबह सुबह उस गन्दी बस्ती से गुजरना उसे कभी भी अच्छा नही लगता था । कितना गन्दगी फैली है चारों तरफ़ । उफ़ ,कैसे जीते हैं यहाँ लोग , मन ही मन उसने सोचा । वह एक multinational कंपनी में कार्यरत है । बहुत ही मेहनती ,अपने उसूलों पर जिंदगी जीने वाला इंसान । बड़ी मेहनत से पढ़ाई की और यहाँ तक पहुँचा । घर वालों को बड़ा गर्व है उस पर, सब दोस्त ,रिश्तेदार ,पड़ोसी उसकी तारीफ़ करते नही थकते हैं ।
लखनऊ के उद्योग विहार से पहले की इस झुग्गी झोपडी बस्ती से वह रोज गुजरता था । जैसे ही झुग्गियां ख़तम हुई उसका धयान अनायास ही कुछ बच्चों पर पडा । शायद वे झुग्गियों की रहने वाले ही थे । पता नही उसे क्या सूझी , मोटरसाइकिल रोकी और उन्हें देखने लगा । ये १२-१५ मैले कुचैले कपड़े पहने झुग्गियों की बच्चे ही थे , मन में अन्दर ही अन्दर पता नही किसके साथ जूझ रहा था , शायद वह ख़ुद ही ख़ुद के साथ बातें कर रहा था ।
सोचा इन सबने क्या कसूर किया है जो यह सब ऐसी जिंदगी जी रहे हैं ... क्या इन्हे स्कूल जाने का हक नही है ??? क्या इन्हे अच्छे अच्छे नए नए कपड़े नही चाहियें क्या ?? क्या भविष्य है इनका ?? ऐसे अनगिनत ही सवाल उसके जहन घूम रहे थे , जिनका उत्तर शायद उसके पास नही था ... अनायास ही ध्यान घड़ी पर गया और देखा की ऑफिस का टाइम हो रहा है , उसने मोटरसाईकिल स्टार्ट की और चल दिया अपने ऑफिस की तरफ़, रोज की तरह ।
पर आज मन में कुछ और ही चल रहा था । एक तरफ़ तो हम भारत को एक विकसित देश बनाना चाह रहे हैं और दूसरी ओर यह सब जो उसने आज देखा ...भारत का भविष्य मैले कुचैले कपड़े पहने !!! अजीब उहापोह की स्थिति थी आज मन की , जो उसने आज तक नही सोचा था ...आज अचानक कैसे उन बच्चों पर धयान चला गया ।
थोड़ा आगे जा के रेड लाइट पे उसने मोटर साइकिल रोकी । साथ में खड़ी गाड़ी की तरफ़ ऐसे ही निगाह चली गई । उसने देखा कि
एक मोटी औरत बैठी अपने कुत्ते को बिस्कुट खिला रही थी ... अपने आप को मुस्कुराने से नही रोक पाया और उसके मुंह से निकल ही गया ..'मेरा भारत महान' ...
क्रमश ...

To be continued ...

4 comments:

  1. एक पूरा खालिस २४ कैरेट का सच बिखरा पड़ा है आपकी रचना मे..सिर्फ़ सच.

    ReplyDelete
  2. kahani achhi kahte hai,,..aage kya hota hai intzar rahega,....

    ReplyDelete
  3. सोचा इन सबने क्या कसूर किया है जो यह सब ऐसी जिंदगी जी रहे हैं ... क्या इन्हे स्कूल जाने का हक नही है ??? क्या इन्हे अच्छे अच्छे नए नए कपड़े नही चाहियें क्या ?? क्या भविष्य है इनका ?? ऐसे अनगिनत ही सवाल उसके जहन घूम रहे थे , जिनका उत्तर शायद उसके पास नही था ...

    आपकी भावनाएं सम्मान योग्य हैं .....मानवता यही सीख़ देती है ....!!

    ReplyDelete